
बचपन
वो बचपन भी क्या जमाना था….
खुशियों से भरा खजाना था…
बारिश में वो कागज़ की कश्ती….
खेलने की मस्ती…
और ये दिल भी तो आवारा था…
मम्मी की गोद,पापा का कंधा…
मस्त, बिंदास लाइफ…
ना सुबह की खबर,ना शाम का ठिकाना…
स्कूल से थक – हार कर आना…
फिर भी दोस्तो के संग खेलने जाना था…
ये मन भी तो बिना लगाम के घोड़ा था…
कितने भी फटकार लगे,ये उबता नहीं था…
ना दोस्ती का मतलब पता था,ना मतलब की दोस्ती…
ना पैसे की सोच थी,ना फ्यूचर के सपने…
बस फरमाइशों का पुल बांधना था…
अब कल की फिकर, अधूरे सपने…
मुड़ कर देखी तो कितने दूर आ गए हम….
ना जाने क्यूं इतने बड़े हो गए हम….
वो बचपन भी क्या जमाना था।।