Pyaar Ka Izhaar

प्यार का इजहार
वो गुड्डे-गुड़ियों का खेल
आज ही हकीकत बन सामने आयी थी…….
सच बताओ
वो खेल था,गाना सुनाने का
या फिर तरीका था, मुझे अपने करीब लाने का….
एक शाम
मै भी बोली,तुमको रोक कर
हाथ बढ़ा ए-ज़िन्दगी
आंखे मिला कर मुझसे बात कर
और बता
क्या मैं और तुम “हम” हो सकते है???
मुरझाती थी,कोई शाम अगर
तो रात कोई खिल जाती है
क्या कहूं,तुम्हारे बारे में
तुम्हारे आने से हर बात बन जाती है…..
आखरी साँस तक तेरा साथ निभाऊंगी
आजमा के देख लो
हद से गुजर जाऊँगी
नमी में खुशी बन जाऊँगी
मुस्कान बन कर होठों पर बिखर जाऊँगी…..
लड़-झगड़ कर तुमसे उलझे रहना भी तो प्यार है
बाकी परेशानियाँ तो बेसुमार है
कह दो
कह दो न एक बार “तेरा हो जाऊँगा”
रात ही तो है, साथ तेरे सो जाऊँगी…….
सवेरा तुम रोज मेरे साथ ही करना
एक रात के बदले पूरी जिंदगी मेरे नाम करना…….
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